था जो मेरा,वो छूटता जा रहा था,
मंजिल की राहो में ,अंधेरा सा छा रहा था,
पराये को अपना समझने की जो की थी भूल मैंने,
धीरे धीरे ये मेरा भ्रम भी टूटता जा रहा था,
भावनाओं का सहारा, खुद बनने की कोशिश करता जा रहा था,
सबसे अलग बनने की कोशिश में गलतियां किये जा रहा था,
सजोये थे जो हज़ारो सपने आंखों में,मेरे परिवार क लिए, उन्हें पूरे करने की कोशिश में
मेरे सब्र का बांध,और मेरा हौसला नासमझी की आंधी में टूटता जा रहा था,
ना सोकर चैन मिलता था,ना जाग कर सुकून आ रहा था
पता नही कैसे चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था,
किसी अपने पराये के चक्कर में,रोज़ खुद की किलस की आग में जलता जा रहा था,
पैसों के पीछे भागता था,लेकिन मन की शांति खोता जा रहा था,
शायद खुद को सबसे अलग बनने के पीछे,सबसे अलग होता जा रहा था,
पहले बहुत चुपचाप रहता था, क्योंकि सब बोलते थे मेरे साथ,
अब मैँ बोलने लग गया हूँ,लेकिन सब सुनने वालो को खोता जा रहा था,
खुद को बड़ा समझदार समझता था,
उसके एक बार समझाने से पागल हो गया था,
हाँ में ख़ौफ़ज़दा हो गया था
जब समझदार था,डरता था,अब नासमझ हु,बेखौफ होता जा रहा था।
Nice lines
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